आओ मिलकर एक सुनहरा भारत बनाएं गौरी (बेटी), गाय और गंगा को बचाएं
नई दिल्ली। गोपाष्टमी का सनातन धर्म में विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह त्योहार मुख्य रूप से गौ माता और भगवान कृष्ण के प्रति श्रद्धा और भक्ति को समर्पित है। गोपाष्टमी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन गौ माता और भगवान कृष्ण की पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि यह दिन भगवान कृष्ण द्वारा गौ चराने की शुरुआत की गई थी। इस अवसर पर शनिवार को सिद्ध शक्तिपीठ शनिधाम में धूमधाम –असोला, फतेहपुर बेरी स्थित शनिधाम गौशाला में गोपाष्टमी का धूमधाम से इस महापर्व को मनाया गया।
Submitted by Shanidham Gaushala on 13 Mar, 2019
महामहिमामयी गौ हमारी माता है उनकी बड़ी ही महिमा है वह सभी प्रकार से पूज्य है गौमाता की रक्षा और सेवा से बढकर कोई दूसरा महान पुण्य नहीं है 1. गौमाता को कभी भूलकर भी भैस बकरी आदि पशुओ की भाति साधारणनहीं समझना चाहिये गौ के शरीर में "३३ करोड़ देवी देवताओ" का वास होता है.गौमाता श्री कृष्ण की परमराध्या है, वे भाव सागर से पार लगाने वाली है.
Submitted by Shanidham Gaushala on 04 Nov, 2019
इस दिन गायों को स्नान कराएं। तिलक करके पूजन करें व गोग्रास दें। गायों को अनुकूल हो ऐसे खाद्य पदार्थ खिलाएं, सात परिक्रमा व प्रार्थना करें तथा गाय की चरणरज सिर पर लगाएं। इससे मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं एवं सौभाग्य की वृद्धि होती है। देशभर में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े उल्लास से मनाया जाता है। विशेषकर गौशालाओं के लिए यह बड़े महत्व का उत्सव है। इस दिन गौशालाओं में एक मेला जैसा लग जाता है। गौ कीर्तन यात्राएं निकाली जाती हैं। यह घर-घर व गांव-गांव में मनाया जाने वाला उत्सव है। कार्तिक शुक्ल अष्टमी यानी सोमवार सुबह गायों को स्नान कराएं। इसके बाद उनको पुष्प, अक्षत, गंध आदि से विधि पूर्वक पूजा करें। फिर ग्वालों को वस्त्र आदि देकर उनका भी पूजन करें। इसके बाद गायों को ग्रास दें और परिक्रमा करें। परिक्रमा करने के बाद गायों के साथ कुछ दूर जाएं। ऐसा करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
Submitted by Shanidham Gaushala on 07 Jul, 2019
10. हल्लिकर हल्लिकर प्रजाति की गायें ज्यादातर कर्नाटक के मैसूर क्षेत्र में पायी जाती हैं। वैसे इसकी उपलब्धता कर्नाटक के अन्य जिलों मांड्या, बेंगलुरू, कोलार, तुमकुर, हसन और चित्रदुर्ग में भी है। मध्यम आकार की सुगठित मांशपेशियों की यह गाय दक्षिण भारत की श्रेष्ठ नस्ल की मानी जाती है तथा उन इलाकों में भारत की अधिकतर प्रजातियां इसी से निकली हैं। हालांकि ये एक तरह से स्वतंत्र नस्ल की गायें होती हैं, जो अमृतहाल प्रजाति की गायों से अधिक दूध देती हैं। ये नर बछड़े को पूरा दूध पीने देती है। इसकी मुंह लंबोत्तरी और ललाट उभार लिए हुए होता है, जबकि सिंग खड़ी और खम्भे की तरह लंबी होती है। कान छोटे और नुकीले होते हैं और पूंछ काली होती है। इसका रंग सफेद लेकिन कालापन लिए हुए होता है।
यज्ञ में सोम की चर्चा है जो कपिला गाय के दूध से ही तैयार किया जाता था। इसीलिए महाभारत के अनुशासन पर्व में गौमाता के विषय में विशेष चर्चाऐं हैं। गाय सभी प्राणियों में प्रतिष्ठत है, गाय महान उपास्य है। गाय स्वयं लक्ष्मी है, गायों की सेवा कभी निष्फल नहीं होती।
मित्रो! यज्ञ में प्रयुक्त होने वाले शब्द जिनसे देवताओं व पितरों को हवन सामग्री प्रदान की जाती है, वे स्वाहा व षट्कार गौमाता में स्थायी रूप से स्थित हैं। स्पष्ट है, यज्ञ स्थल गाय के गोबर से लीपकर पवित्र होता है। गाय के दूध, दही, घृत, गोमूत्र और गोबर से बने हुए पंचगव्य से स्थल को पवित्र करते हैं।
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