आओ मिलकर एक सुनहरा भारत बनाएं गौरी (बेटी), गाय और गंगा को बचाएं
नई दिल्ली। गोपाष्टमी का सनातन धर्म में विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह त्योहार मुख्य रूप से गौ माता और भगवान कृष्ण के प्रति श्रद्धा और भक्ति को समर्पित है। गोपाष्टमी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन गौ माता और भगवान कृष्ण की पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि यह दिन भगवान कृष्ण द्वारा गौ चराने की शुरुआत की गई थी। इस अवसर पर शनिवार को सिद्ध शक्तिपीठ शनिधाम में धूमधाम –असोला, फतेहपुर बेरी स्थित शनिधाम गौशाला में गोपाष्टमी का धूमधाम से इस महापर्व को मनाया गया।
Submitted by Shanidham Gaushala on 07 Jul, 2019
12. निमाड़ी मध्य प्रदेश के नर्मदा की घाटियों में पायी जाने वाली निमाड़ी प्रजाति की गौवंश का रूपरंग मूलतः गिर और खल्लारी से मेल खाता है। इसपर भूरापन लिए हुए लाल रंग के साथ जगह-जगह बड़े सफेद धब्बे होते हैं। यह दिखने में तांबे के रंग का होता है। इस प्रजाति का गौवंश काफी फूर्तिले होते हैं। अगर इनकी अच्छी देखभाल की जाए तो ये काफी दूध देते हैं। सिंग पीछे की ओर झुके हुए और पूंछ काली एवं साफ होती हैं। इस प्रजाति की अच्छी देखभाल करें, तो पर्याप्त मात्रा में दूध प्राप्त होता है।
Submitted by Shanidham Gaushala on 01 Apr, 2019
गाय – पवित्रतम् पशु यह तो सभी जानते हैं कि हिन्दू धर्म में गाय को पवित्र माना गया है, इसकी पूजा की जाती है, इसकी सेवा की जाती है, लेकिन क्यों? क्या यह महज़ मान्यता है या इसके पीछे कोई कारण भी है? वर्षों से हो रहे रीति-रिवाज़ हमेशा ही निभाए जाते हैं, आज के युग में भी लोग प्राचीन रिवाज़ों का पालन कर रहे हैं, लेकिन हर कोई इन रिवाज़ों का महत्व और उद्देश्य नहीं जानता।
Submitted by Shanidham Gaushala on 10 Jun, 2019
इस संसार में ‘गौ’ एक अमूल्य और कल्याणप्रद पशु है। सूर्य भगवान के उदय होने पर उनकी ‘ज्योति’, ‘आयु’ और ‘गो’–ये तीन किरणें स्थावर-जंगम (चराचर) सभी प्राणियों में कम या अधिक मात्रा में प्रविष्ट होती हैं; परन्तु ‘गो’ नाम की किरण गौ-पशु में ही अधिक मात्रा में समाविष्ट होती है इसीलिए इनको ‘गौ’ नाम से पुकारते हैं। ‘गो’ नामक सूर्य किरण की पृथ्वी स्थावरमूर्ति (अचलरूप) और गौ-पशु जंगममूर्ति (चलायमानरूप) है।
यज्ञ में सोम की चर्चा है जो कपिला गाय के दूध से ही तैयार किया जाता था। इसीलिए महाभारत के अनुशासन पर्व में गौमाता के विषय में विशेष चर्चाऐं हैं। गाय सभी प्राणियों में प्रतिष्ठत है, गाय महान उपास्य है। गाय स्वयं लक्ष्मी है, गायों की सेवा कभी निष्फल नहीं होती।
मित्रो! यज्ञ में प्रयुक्त होने वाले शब्द जिनसे देवताओं व पितरों को हवन सामग्री प्रदान की जाती है, वे स्वाहा व षट्कार गौमाता में स्थायी रूप से स्थित हैं। स्पष्ट है, यज्ञ स्थल गाय के गोबर से लीपकर पवित्र होता है। गाय के दूध, दही, घृत, गोमूत्र और गोबर से बने हुए पंचगव्य से स्थल को पवित्र करते हैं।
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