आओ मिलकर एक सुनहरा भारत बनाएं गौरी (बेटी), गाय और गंगा को बचाएं
नई दिल्ली। गोपाष्टमी का सनातन धर्म में विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह त्योहार मुख्य रूप से गौ माता और भगवान कृष्ण के प्रति श्रद्धा और भक्ति को समर्पित है। गोपाष्टमी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन गौ माता और भगवान कृष्ण की पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि यह दिन भगवान कृष्ण द्वारा गौ चराने की शुरुआत की गई थी। इस अवसर पर शनिवार को सिद्ध शक्तिपीठ शनिधाम में धूमधाम –असोला, फतेहपुर बेरी स्थित शनिधाम गौशाला में गोपाष्टमी का धूमधाम से इस महापर्व को मनाया गया।
Submitted by Shanidham Gaushala on 07 Jul, 2019
17. अमृत महाल कर्नाटक के मैसूर, हासन, चिकमगलूर और चित्रदुर्गा जिले में पायी जाने वाली अमृतमहाल नस्ल की गायें खाकी रंग की होती है। इस प्रजाति की गायों का रंग खाकी, मस्तक और गला काले रंग की, सिर लंबा , जबकि मुंह और नथुने कम चैड़ाई के होते हैं। इन्हें वर्ष 1575 और 1632 के दौरान विकसित किया गया, जिन्हें एक ताकतवर नजरिए से देखा गया, क्योंकि इसके बैल मध्यम कद के और बहुत ही फूर्तीले होते हैं। एक जमाने में ये बैल मुख्य रूप से परिवहन के लिए इस्तेमाल आते थे और इन्हें बेन्ने चेवड़ी कहा जाता था। टिपू सुल्तान से इसे नया नाम अमृतमहाल दिया था। हालांकि ये गायें बहुत कम दूध देती हैं। इनकी सिंगें लंबी, नुकीली और पीछे की और लहराती हुई होती हैं तथा कान छोटे और क्षैतिज अर्थात दोनों ओर फैले होते हैं। खूर कड़े और काफी सटे होते हैं।
Submitted by Shanidham Gaushala on 09 Nov, 2024
सोडावास, पाली के निकटवर्ती ग्राम सोडावास में सोडावास श्री शनिधाम गौशाला में गौमाताओं की पुजा-अर्चना कर श्रद्धा से मनाया गया गोपाष्टमी का महापर्व गौमाताओं को श्रीमहंत श्रद्धापुरी जी महाराज ने चन्दन रौली का टिका, चुंदरी ओड़ाकर गुड लापसी का भोग लगवाकर सुख समृद्धि की कामना की गई
Submitted by Shanidham Gaushala on 07 Jul, 2019
8. लाल कंधारी नांदेड़ जिले के कांधार और महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में पाये जाने वाली लाल कंधारी गायों के बारे में मान्यता है कि इस प्रजाति को चौथी सदी में कांधार के राजाओं के द्वारा विकसित किया गया था। औसत आकर की इन गायों का रंग गाढ़ा भूरा या गाढ़ा लाल होता है तथा इसकी ललाट चौड़ी होती है। लंबे कान दोनों ओर नीचे की ओर झुके होते हैं और आंखों के चारो ओर कालापन होने के साथ-साथ थुथन काली होती है। सीगें छोटी और दोनों तरफ सीधी लाइन में फैली हुई तथा पूंछ काली व लंबी होती हैं।
यज्ञ में सोम की चर्चा है जो कपिला गाय के दूध से ही तैयार किया जाता था। इसीलिए महाभारत के अनुशासन पर्व में गौमाता के विषय में विशेष चर्चाऐं हैं। गाय सभी प्राणियों में प्रतिष्ठत है, गाय महान उपास्य है। गाय स्वयं लक्ष्मी है, गायों की सेवा कभी निष्फल नहीं होती।
मित्रो! यज्ञ में प्रयुक्त होने वाले शब्द जिनसे देवताओं व पितरों को हवन सामग्री प्रदान की जाती है, वे स्वाहा व षट्कार गौमाता में स्थायी रूप से स्थित हैं। स्पष्ट है, यज्ञ स्थल गाय के गोबर से लीपकर पवित्र होता है। गाय के दूध, दही, घृत, गोमूत्र और गोबर से बने हुए पंचगव्य से स्थल को पवित्र करते हैं।
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