आओ मिलकर एक सुनहरा भारत बनाएं गौरी (बेटी), गाय और गंगा को बचाएं
नई दिल्ली। गोपाष्टमी का सनातन धर्म में विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह त्योहार मुख्य रूप से गौ माता और भगवान कृष्ण के प्रति श्रद्धा और भक्ति को समर्पित है। गोपाष्टमी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन गौ माता और भगवान कृष्ण की पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि यह दिन भगवान कृष्ण द्वारा गौ चराने की शुरुआत की गई थी। इस अवसर पर शनिवार को सिद्ध शक्तिपीठ शनिधाम में धूमधाम –असोला, फतेहपुर बेरी स्थित शनिधाम गौशाला में गोपाष्टमी का धूमधाम से इस महापर्व को मनाया गया।
Submitted by Shanidham Gaushala on 07 Jul, 2019
20. जवरी कर्नाटक के बीजापुर और हुबली क्षेत्रों में पायी जाने वली जवारी प्रजाति की गायें छोटे कद की होती हैं। इनमें रोगों से लड़ने और विपरीत जलवायु को सहन करने की अच्छी क्षमता होती है। अर्थात इनको कोई बीमारी नहीं होती है। ये अलग-अलग रंगों में पायी जाती हैं। जैसे पूरी काली, भूरी या स्लेटी रंगों की होती हैं। थूथन का रंग भी गाढ़ा भूरा होता है। इसी तरह से खूर गाढ़े भूरे या स्लेटी होते हैं। सिर छोटे, मस्तक चैड़ाई लिए हुए और सिंगें फैली हुई छोटे आकर की होती हैं। छोटे पैरों के कारण इसके बौनेपन का आभास होता है। सामान्य मात्रा में दूध देती हैं।
Submitted by Shanidham Gaushala on 07 Jul, 2019
16. खिल्लारी मुख्यतः कर्नाटक के बीजापुर, मध्य प्रदेश के सतपुड़ा और महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में पायी जाने वाली खिल्लारी प्रजाति की गौवंश खाकी रंग की होती हैं। इनका गलंकबल काफी बड़ा होता है। इस प्रजाति की गाय में दूध देने की क्षमता कम होती है, लेकिन इसके बैल काफी शक्तिशाली और सहनशक्ति वाले होते हैं। इसकी कुछ नस्लों में काफी थोड़ा अंतर होता हेै। कुछ की नाक और खूर लालिमा लिए हुए भूरे रंग की होती हैं। जन्म लेने वाला बछड़ा दो माह तक लाल रंग का होता है, जिसके रंग में बड़ा होने पर बदलाव आ जाता है। सिंग दोनो ओर फैले हुए नुकीले ओर कान छोटे होते हैं। पूंछ लंबी और काली होती है। खूर भी सटे हुए काले होते हैं|
Submitted by Shanidham Gaushala on 13 Mar, 2019
प्राणी विज्ञान में स्पष्ट किया गया है कि गुरदों द्वारा रक्त का शोधन व छानने की प्रक्रिया संपन्न होती है और अवशिष्ट अंश मूत्रा के रूप में बाहर निलकता है। दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि मूत्रा गुर्दे द्वारा छना हुआ रक्त का अंश होता है। चूंकि रक्त में प्राण-शक्ति निहित है, उसमें स्वर्ण-क्षार, ताम्र अंश एवं लौह अंश का सम्मिश्रण होता है।
यज्ञ में सोम की चर्चा है जो कपिला गाय के दूध से ही तैयार किया जाता था। इसीलिए महाभारत के अनुशासन पर्व में गौमाता के विषय में विशेष चर्चाऐं हैं। गाय सभी प्राणियों में प्रतिष्ठत है, गाय महान उपास्य है। गाय स्वयं लक्ष्मी है, गायों की सेवा कभी निष्फल नहीं होती।
मित्रो! यज्ञ में प्रयुक्त होने वाले शब्द जिनसे देवताओं व पितरों को हवन सामग्री प्रदान की जाती है, वे स्वाहा व षट्कार गौमाता में स्थायी रूप से स्थित हैं। स्पष्ट है, यज्ञ स्थल गाय के गोबर से लीपकर पवित्र होता है। गाय के दूध, दही, घृत, गोमूत्र और गोबर से बने हुए पंचगव्य से स्थल को पवित्र करते हैं।
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