Submitted by Shanidham Gaushala on 10 Nov, 2024
नई दिल्ली। गोपाष्टमी का सनातन धर्म में विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह त्योहार मुख्य रूप से गौ माता और भगवान कृष्ण के प्रति श्रद्धा और भक्ति को समर्पित है। गोपाष्टमी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन गौ माता और भगवान कृष्ण की पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि यह दिन भगवान कृष्ण द्वारा गौ चराने की शुरुआत की गई थी। इस अवसर पर शनिवार को सिद्ध शक्तिपीठ शनिधाम में धूमधाम –असोला, फतेहपुर बेरी स्थित शनिधाम गौशाला में गोपाष्टमी का धूमधाम से इस महापर्व को मनाया गया। महामंडलेश्वर परमहंस दाती महाराज के सान्निध्य में श्रद्धालुओं ने गौमाताओं की पुजा-अर्चना कर गुड़-लापसी खिलाकर सुख समृद्धि कामना की। परम गौभक्त दाती जी महाराज ने कहा गोपाष्टमी के दिन गौ माता की पूजा करना अत्यंत शुभ और पुण्यकारी माना जाता है। गाय को हिंदू धर्म में माता का स्थान प्राप्त है और उसे समस्त देवताओं का वास स्थल माना गया है। गाय को धन, समृद्धि, और शुभता का प्रतीक माना जाता है और गोपाष्टमी के दिन उसकी पूजा करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति आती है। गोपाष्टमी का दिन भगवान कृष्ण से विशेष रूप से जुड़ा हुआ है। इस दिन भगवान कृष्ण ने पहली बार गो-चारण यानी गायों को चराने का कार्य किया था और वह गोपाल यानी गायों के रक्षक के रूप में पूजे गए। कृष्ण की बाल लीलाओं में गायों के प्रति उनका प्रेम और सेवा महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इसलिए, गोपाष्टमी के दिन भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है और गायों की सेवा कर उनके प्रति श्रद्धा प्रकट की जाती है। गोपाष्टमी के दिन गौ सेवा करना और उन्हें भोजन कराना विशेष फलदायी माना गया है। गायों को घास, गुड़, हरा चारा, और पानी देना शुभ माना जाता है उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने देसी गाय को राज्यमाता का दर्जा दिया:ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य बना है मेरी और से माननीय एकनाथ शिंदे जी और महाराष्ट्र सरकार के प्रति आभार प्रकट करता हूँ ।
इस दिन शनिधाम गौशाला परिसर में परमहंस दाती महाराज ने गौमाता व बछड़ों को चूनरी ओढ़ाकर उनके भाल पर तिलक कर गुड खिलाया सुबह गौमाताओं को स्नान कराने के बाद परमहंस दाती महाराज तथा सैंकड़ों श्रद्धालुओं ने शनिधाम परिसर स्थित गोशाला में गायों की पुष्प, अक्षत, गंध आदि से विधि पूर्वक पूजा की। इसके बाद गोवंश का वस्त्र (चूनरी) ओढ़ाई गई। इसके बाद गायों को लापसी के रूप में ग्रास देकर उनकी परिक्रमा की गई। परिक्रमा करने के बाद गायों को दुलारा गया। उन्हें भोजन देकर उनकी चरण रज को माथे पर धारण किया गया। गौमाता का श्रृंगार कर के उनकी आरती उतारी गई। इसी तरह शनिधाम गौशाला दिल्ली, हिंगावास, पाली, सोडावास, हरिपुर, आदि सभी शाखाओं पर गौमाताओं की विधिवत पूजा अर्चना कर सुख समृद्धि की गई ।