आओ मिलकर एक सुनहरा भारत बनाएं गौरी (बेटी), गाय और गंगा को बचाएं
Submitted by Shanidham Gaushala on 07 Jul, 2019
14. वेचूर गौवंश की वेचूर प्रजाति केरल प्रदेश की है। छोटे कद की इस नस्ल की गाय को केरल में त्रिचूर जिला स्थित मनूथी में केरल कृषि विश्वविद्यालय ने विकसित किया है, जिनकी संख्या बहुत ही कम है। वैसे इस नस्ल के ऊपर मध्य प्रदेश के सतना जिले में चित्रकूट स्थित दीनदयाल शोध संस्थान में विकासात्मक काम किया गया हैं। इस जाति की गायों पर जहां रोगों का प्रभाव बहुत ही कम पड़ता है, वहीं इस नस्ल की गायों के दूध में सर्वाधिक औषधीय गुण पाए जाते हैं। इसे दुधारू श्रेणी की गायों में रखा जा सकता है। यहां तक कि इसके पालने में बहुत ही कम खर्च आता है, जो एक बकरी पालने के खर्च जैसा ही होता है। हल्के लाल, काले और सफेद रंगों के खूबसूरत मेल की इस नस्ल की गायों का सिर लंबा और संकरा होता है, जबकि सिंगें छोटी, पूंछ लंबी और ललाट कर्व लिए होती हैं। कान सामान्य लेकिन दिखने में आकर्षक होते हैं।
Submitted by Shanidham Gaushala on 29 Jun, 2019
कहते हैं कि जो गौमाता के खुर से उड़ी हुई धूलि को सिर पर धारण करता है, वह मानों तीर्थ के जल में स्नान कर लेता है और सभी पापों से छुटकारा पा जाता है । पशुओं में बकरी, भेड़, ऊंटनी, भैंस का दूध भी काफी महत्व रखता है। किंतु केवल दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के कारण भैंस प्रजाति को ही प्रोत्साहन मिला है, क्योंकि यह दूध अधिक देती है व वसा की मात्रा ज्यादा होती है, जिससे घी अधिक मात्रा में प्राप्त होता है।
Submitted by Shanidham Gaushala on 28 Oct, 2020
साहिवाल भारतीय उपमहाद्वीप की एक उत्तम दुधारू नस्ल है जो कि उष्ण कटिबन्धीय जलवायु में अपनी दूध क्षमता के लिए सम्पूर्ण विश्व में विख्यात है | इस नस्ल का निर्यात अफ़्रीकी देशों के अलवा आस्ट्रेलिया तथा श्रीलंका में भी वहाँ की स्थानीय गायों की नस्ल सुधार के लिए किया गया है | यह नस्ल चिचडों तथा अन्य बाहय परजीवियों के प्रति प्रतिरोधी होती है | यह नस्ल गर्म जलवायु को आसानी से सहन कर सकती है |
यज्ञ में सोम की चर्चा है जो कपिला गाय के दूध से ही तैयार किया जाता था। इसीलिए महाभारत के अनुशासन पर्व में गौमाता के विषय में विशेष चर्चाऐं हैं। गाय सभी प्राणियों में प्रतिष्ठत है, गाय महान उपास्य है। गाय स्वयं लक्ष्मी है, गायों की सेवा कभी निष्फल नहीं होती।
मित्रो! यज्ञ में प्रयुक्त होने वाले शब्द जिनसे देवताओं व पितरों को हवन सामग्री प्रदान की जाती है, वे स्वाहा व षट्कार गौमाता में स्थायी रूप से स्थित हैं। स्पष्ट है, यज्ञ स्थल गाय के गोबर से लीपकर पवित्र होता है। गाय के दूध, दही, घृत, गोमूत्र और गोबर से बने हुए पंचगव्य से स्थल को पवित्र करते हैं।
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